Thursday, April 18, 2019

मुसलमान हमारे अपने लोग हैं: साध्वी प्रज्ञा

भोपाल से भाजपा की प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगांव धमाकों में लगे आरोप पर फिर सफ़ाई दी है. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्होंने 'कोई कुकर्म नहीं किया जो मालेगांव का भूत हमेशा उनके पीछे लगा रहेगा'.

उन्होंने हिंदू धर्म को शांति का प्रतीक बताया और मुसलमानों को 'हमारे अपने लोग' कहा. उन्होंने 'हिंदू आतंकवाद' की धारणा को ख़ारिज करते हुए इसे कांग्रेस नेताओं के दिमाग़ की उपज बताया.

उन्होंने ये भी कहा कि यूपीए सरकार में गृह सचिव रहे और अब भाजपा नेता आरके सिंह की ओर से अतीत में 'हिंदू आतंकवाद' शब्द इस्तेमाल किए जाने की जानकारी उन्हें नहीं है.

29 सितंबर 2008 को महाराष्‍ट्र के मालेगांव में एक बाइक में लगाए गए दो बमों के फटने से सात लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सौ से ज़्यादा लोग घायल हो गए थे.

साध्वी प्रज्ञा पर पहले महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) लगाया गया था लेकिन बाद में कोर्ट ने उसे हटा लिया और उन पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला चला.

साध्वी प्रज्ञा मालेगांव बम धमाकों के मामले में नौ साल तक जेल में रहीं और फ़िलहाल ज़मानत पर बाहर हैं. प्रज्ञा आरोप लगाती हैं कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने उन्हें झूठे मामले में फंसाया है.

भाजपा ने उन्हें भोपाल से वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतारा है.

साध्वी की तरह रहने वाली प्रज्ञा गेरुआ वस्त्र पहनती हैं और 'हरिओम' उनका अभिवादन होता है. बीबीसी ने उनसे बात की तो पहले उन्होंने यही कहा कि 'मैं बात करूंगी लेकिन आप मुझे मैडम न कहें. साध्वी जी कहें.'

दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ भाजपा को अपने संगठन का कोई पुराना नेता नहीं मिला जो आपको उतारा गया. इसे आप कैसे देखती हैं?

आप क्या समझते हैं कि मुझे उतारना भाजपा की मजबूरी रही या मैं योग्य नहीं हूं?

भाजपा का काम समाज से चलता है. यहां एक परिवार को अधिकार नहीं है कि वही राजनीति करेगा. यहां जो योग्य है और जिसे अवसर मिलता है, वो चुनाव में खड़ा हो जाता है.

भाजपा ने आपसे संपर्क किया या आपकी ओर से किया गया?

नहीं ये तो प्रक्रिया थी. ऐसा तो नहीं है कि ये एकाध दिन की प्रक्रिया है. ये चलती है. किसने क्या किया ये तो मुझे याद नहीं है. पर संपर्क हुआ. निश्चित तौर पर योजनाएं तय होती हैं. समाज के समक्ष किसे नेतृत्व करना है, ये उनकी ओर से तय होता है.

अपने प्रति दिग्विजय सिंह के लिए कोई संदेश है आपका?

आज भी मैं यही कहूंगी. साधु-संन्यासी यही कहते हैं कि अधर्म का मार्ग छोड़कर धर्म का मार्ग पकड़िए. असत्य का मार्ग छोड़कर सत्य का मार्ग पकड़िए. बस इतना ही कहूंगी.

मैं स्वयं प्रत्यक्ष प्रमाण हूं इसका (लंबा विराम). उन्होंने जो षड्यंत्र किए उन षड्यंत्रों का और जो मैंने सहा है उनके षड्यंत्रों के कारण, मैं उसका प्रत्यक्ष प्रमाण हूं.

आप मालेगांव धमाका मामले की ओर इशारा कर रही हैं, जिसका ज़िक्र बार-बार होता है. आप अभी ज़मानत पर बाहर हैं. बरी नहीं हुई हैं. जब आप चुनाव में उतरेंगी तो इसका भूत आपका पीछा नहीं छोड़ेगा. आप पर एक दाग़ तो है ही.

मैं एक ही बात कहूंगी. मैं तो किसी भी प्रकार से, अंश मात्र भी, कोई हमारी कहीं लिप्तता नहीं है. फिर भी जो जेल में बैठ चुके हैं और जो अभी ज़मानत पर हैं, कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सभी ज़मानत पर हैं. हम तो इन्हीं के द्वारा प्रताड़ित हैं, हम तो इन्हीं के द्वारा डाले गए हैं. ये तो षड्यंत्र करके ही ऐसा किया उन्होंने.

पीछा छोड़ने का अर्थ ये नहीं है कि मैंने कोई कुकर्म या दुष्कर्म किया है, जिसके कारण मेरे पीछे कुछ लगा हुआ है. बल्कि इनके कुकर्म को हम भोग रहे हैं. न मैंने कोई भ्रष्टाचार किया है, न कोई अनाचार किया है. न कोई घपला किया है और न देश के विरुद्ध बोला है.

लेकिन आपकी छवि हिंदू अतिवाद की है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. और इसकी आलोचना दिग्विजय सिंह लगातार करते रहे. आपके आने से लोग कह रहे हैं कि भोपाल की सीट पर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण होगा.

मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगी कि जो इन्होंने हिंदुत्व की परिभाषा दी है, कभी उन्होंने हिंदुत्व को आतंकवादी कह दिया, कभी सॉफ्ट हिंदुत्व कह दिया, कभी कट्टर कह दिया. लेकिन हिंदुत्व का चिंतन कितना व्यापक है, वो एक श्लोक से ही प्रकट होता है- 'वसुधैव कुटुम्बकम.' 'सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामय:' इतनी बड़ी सोच, इतना बड़ा चिंतन, इतना वृहद हमारा धर्म है कि उसमें कहीं कट्टर या सॉफ्ट जैसी चीज़ें नहीं आतीं.

हिंदुत्व पूरी पृथ्वी पर सुखमय जीवन देखना चाहता है. पृथ्वी ही क्या हमारे यहां तो सब जगह शांति का संदेश दिया गया है. (इसके बाद वह शांति पाठ पढ़ने लगती हैं.)

आपने वसुधैव कुटुम्बकम का ज़िक्र किया, अक्सर संघ परिवार भी इसका ज़िक्र करता है. इसका अर्थ है कि पूरा विश्व ही हमारा परिवार है. तो क्या इस परिवार में मुसलमान शामिल नहीं हैं?

मुसलमान कहां से आए? भारत में जो हिंदू हैं, वे कन्वर्टेड लोग हैं. सनातन से निकले लोग हैं. देश-काल-परिस्थिति के अनुसार इनके पूर्वजों ने या वर्तमान में किसी न किसी कारण से उन्होंने अपना धर्म छोड़ दिया. तो वो कहीं से थोड़े ही आए हैं, वे हमारे लोग हैं.

इस भारत का खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं. उनके भी कर्तव्य हैं देश के लिए. जैसे हम संतान हैं देश की, ऐसे ही वे भी संतान हैं. हम क्यों ऐसा कहेंगे कि वे अलग हैं और हम अलग हैं. जब हमारी संस्कृति ऐसी है कि हम सबको आत्मसात करते हैं. भारत ही है, जहां सब समा जाते हैं. लेकिन बताइए कोई और ऐसा देश है जहां कोई देश में रहकर देश के विरुद्ध बात कर सकता हो.

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