सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन संबंधी विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया है.
यह बिल जिस तरह से मंगलवार को लोकसभा में लगभग सर्वसम्मति से पारित हुआ था, उसी तरह से राज्यसभा में यह बिल आसानी से पारित हो गया.
राज्यसभा में इस बिल के समर्थन में कुल 165 मत पड़े जबकि सात लोगों ने इसका विरोध किया. इस बिल पर साढ़े दस घंटे तक पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने चर्चा की.
इस बिल में संशोधन के तमाम प्रस्ताव गिर गए, यानी ये बिल उसी रूप में पारित हुआ है, जिस रूप में सरकार ने इसे पेश किया था.
वहीं, कल लोकसभा में बिल पारित होने के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किए थे. वैसे ही उन्होंने राज्यसभा से बिल पास होने के बाद भी तीन ट्वीट किए.
उन्होंने पहले ट्वीट में लिखा, "वह प्रसन्न हैं कि राज्यसभा ने संविधान (124वां संशोधन) विधेयक, 2019 पास कर दिया. इस विधेयक का व्यापक समर्थन देखकर वह ख़ुश हैं. सदन ने एक जीवंत बहस को देखा जहां कई सदस्यों ने अपनी राय व्यक्त की."
इसके बाद किए गए ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि दोनों सदनों से इस बिल का पास होना सामाजिक न्याय की जीत है. साथ ही उन्होंने लिखा कि यह देश की युवा शक्ति को अपना कौशल दिखाने में एक व्यापक अवसर देगा.
तीसरे ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी ने इस बिल के पास होने को संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए श्रद्धांजलि बताया है. उनका कहना है कि वे लोग ऐसे भारत की कल्पना करते थे जो मज़बूत और समावेशी हो.
राज्य सभा से विधेयक को पारित करवाने के लिए सत्र का कार्यकाल एक दिन बढ़ाया गया था.
बुधवार को बिल पेश किए जाने के बाद विपक्ष ने ज़ोरदार हंगामा किया जिसके बाद सदन को दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. दोपहर बाद दोबारा चर्चा शुरू हुई.
शुरुआत बीजेपी सांसद प्रभात झा ने की. उनके बाद राज्य सभा में कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा और फिर बारी-बारी से विभिन्न दलों के सांसदों ने संसद में बिल पर अपनी बातें रखीं.
बहुजन समाज पार्टी के सतीश मिश्रा ने इस बिल का स्वागत किया है. लेकिन उन्होंने इस बिल पर सवाल भी उठाए हैं.
सतीश मिश्रा के भाषण की मुख्य बातें-
रिज़वर्शेन इन प्रमोशन बिल किस हाल में है, पांच साल में सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया है.
संविधान में संशोधन करके पिछड़े और दलितों की संख्या को आबादी के हिसाब से आरक्षण कब देंगे, ये बताइए.
ये आरक्षण क्या वाक़ई में ग़रीब सवर्णों के लिए है, सरकार का क्राइटेरिया क्या है, आपने कह दिया कि राज्य सरकार प्रावधान करेगी. इसे अमीरों के लिए मत बनाइए, ग़रीबों के लिए बनाइए, बिल में सुधार लाइए.
सरकार कह रही है कि अंतिम बॉल पर छक्का लगाया है, लेकिन मैं कह रहा हूं कि गेंद बाउंड्री के पार नहीं जाएगी. आपको आउट होना ही है.
सरकार के पास नौकरियां नहीं हैं, लेकिन सरकार करोड़ों लोगों को नौकरी देने का वादा कर रही है. ये सरकार छलावा कर रही है.
कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने इस बहस में कहा-
सरकार को जल्दी क्यों है, ये वही जानते हैं.
बिल लाने के लिए सरकार ने क्या कोई डेटा कलेक्ट किया है.
मंडल कमीशन के बिल को पास करने में दस साल लगे थे, अभी सरकार संविधान में संशोधन एक दिन में करने जा रही है.
हिंदुस्तान में कितने लोगों के पास 5 एकड़ ज़मीन है, इसका क्या कोई डेटा सरकार ने जमा किया है.
आठ लाख से कम वाला ग़रीब माना जा रहा है, दूसरी ओर 2.5 लाख से ज़्यादा आमदनी वाले को टैक्स देना पड़ रहा है, सरकार टैक्स में छूट की सीमा 8 लाख रुपये सालाना क्यों नहीं कर रही है.
हम लोग आरक्षण पर बहस कर रहे हैं, लेकिन देश में नौकरियों पर बहस की ज़रूरत है. सरकारी और निजी कंपनियों में नौकरियां लगातार कम हो रही हैं.
बिना किसी तैयारी और प्रावधान के इसे लागू करने पर नोटबंदी जैसा हाल होगा इस प्रावधान का.
बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने इस बहस में बोलते हुए कहा-
ज़्यादातर लोगों ने समर्थन किया है.
इस सदन के अधिकार के बारे में कुछ सदस्यों को आशंका क्यों है, हम संसद हैं, हमें क़ानून बनाने और संविधान में संशोधन का अधिकार है.
मूलभूत अधिकार में बदलाव के लिए राज्यों की विधानसभा के पास जाने की ज़रूरत नहीं है. ऐसा संविधान की धारा 368 में कहा गया है.
आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी संविधान में कहीं नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में आया है.
हम संविधान की धारा 15 में इकोनॉमिक वीकर सेक्शन को जगह दे रहे हैं. नौकरियों में आरक्षण दे रहे हैं.
इस प्रावधान के लिए ओबीसी और एससी-एसटी आरक्षण के प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.
सपा के सांसद राम गोपाल यादव के भाषण की मुख्य बातेंः
नौकरियों में आरक्षण बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है क्योंकि नौकरियां हैं ही नहीं. नोटबंदी ने तो नौकरियां लोगों से छीनने का काम किया. पहले मज़दूर नहीं मिलते थे लेकिन अब एक मज़दूर के लिए जाइए तो चार लोग साथ आते हैं.
हमने देखा है ये ऊंच-नीच की भावना देश में धंसी हुई है. हालांकि धीरे-धीरे ये कम हो रही है लेकिन ख़त्म नहीं हुई. एक बार बाबू जगजीवन राम बनारस गए तो लोगों ने उस तस्वीर को गंगाजल से धोया जिस पर उन्होंने माल्यार्पण किया था. अभी भी दलित किसी ऊंची जाति के घर के सामने से घोड़ी से सवार होकर जाता है तो उसका अपमान और मारपीट की जाती है.
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